दर्द-ओ-ग़म की टीस हंसाते रहती है
तुम्हें क्या बताऊँ, अपने हंसने चहकने का राज़,
दर्द-ओ-ग़म की टीस है कि, हंसाते रहती है।
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कई बार हमने छोड़ डाला, हाला प्याला मधुशाला,
साकी की ज़िद है कि, बुलाते पिलाते रहती है।
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फ़ासले तो देखिए, उनके हमारे शहर के दरम्यां,
हसीं यादें हैं कि, हर पल गले लगाते रहती है।
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कह रहा था डाकिया, खाली हाथ मुझसे मिलकर,
मा’शूक़ है कि, चिठ्ठियाँ लिखते मिटाते रहती है।
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वक़्त लगता है मिसरे से शे’र, शे’र से नज़्म बनने में,
इनायत-ए-ख़ुदाई है कि, उम्दा लिखाते रहती है।