दरिद्र ही नारायण
विधा— घनाक्षरी
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दरिद्र ही नारायण
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दूध दधी हाथ लिए,
फल का प्रसाद लिए।
गंगा जल। ढार कर,
शिव को मनाइए।।
सावन ये पावन है,
लगे मन भावन है।
बम बम भोले बम,
बोलते ही जाइये।।
अभिमान त्याग कर,
मंदिर को भाग कर।
ढेर सारा फलाहार,
शिव को चढ़ाइए।।
किन्तु वह जानता है,
मर्म पहचानता है।
दरिद्र ही नारायण,
आप जान जाइये।।
भूखे को भोजन देना,
निर्धन की दुआ लेना।
दुखियों की सेवा को ही,
पूजा मान जाइये।।
दुख का वो नाश करे,
भक्त का सम्मान करे।
भिक्षुक को दान कर,
शिव गुण गाइये।।
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✍✍पं.संजीव शुक्ल “सचिन”