दया -भाव
दया-भाव सर्वोच्च गुण ,आत्मसात कर चित्त ।
मिलता है परमेश से,बन कल्याण-निमित्त ।।
दया,धर्म का मूल है ,धर्म जीव की शक्ति ।
ज्योतिहीन दीपक-सरिस ,दयाहीन जो व्यक्ति ।।
दया भाव भरता सदा,जीवन में सुख हर्ष ।
आनंदित अंतःकरण,मुस्काता उत्कर्ष।।
निश्छल प्रेमिल भाव का,अधिकारी हर जीव ।
जीव-जीव के बीच हो,करुणा दया अतीव।।
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’शोहरत
स्वरचित
वाराणसी