“दयानत” ग़ज़ल
अपनी चाहत का करके नाम अमर जाएंगे ,
याद उसने जो ना किया तो गुज़र जाएंगे l
चिढ़ है उसको भले उल्फ़त से जानता हूँ मैं,
छोड़ ज़ालिम पे आशिक़ी का असर जायेंगे l
सुना है बरिशों में दिल है मचलता उसका,
अश्क़े-सैलाब से भर उसका शहर जाएंगे l
कनखियों से वो देखता है मुझको महफ़िल में,
अदाए-शोख़ पे, पल भर मेँ ही, मर जाएंगे l
शौक़ है उसको, हवेली का, सुना है हमने,
खूँ से अपने ही, रँग के उसका क़सर जाएंगे l
उससे कह दो कोई जल्दी नहीं है रुख़सत की,
आ गए हैं जो अब, तो दौरे-सहर जाएंगे।
बेख़ुदी में कहाँ रहता है होश मंज़िल का,
ख़बर भी क्या हमेँ, यहाँ से किधर जाएंगे l
हम फ़कीरों की दयानत से वो वाकिफ़ भी कहाँ,
उम्र तक अपनी, उसके नाम ही, कर जाएंगे l
देख ली हाथ मेँ, शमशीर है, उसके “आशा”,
अब तो मक़तल में कटा करके ही सर जायेंगे..!
उल्फ़त # प्रेम, love
अश्क़े-सैलाब# आंसुओं की बाढ़, flood of tears
क़सर # महल, palace
रुख़सत # विदाई, farewell
दौरे-सहर # सुबह के वक़्त, in morning hours
दयानत # देने की भावना, ईमानदारी; सच्चाई आदि, virtue of giving, honesty, probity etc
शमशीर # तलवार,sword
मक़तल # क़त्लगाह, जहाँ क़त्ल किए जाते हैं, a place of slaughter or, execution
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