तेरे होने का जिसमें किस्सा है
मिनख रो नही मोल, लारे दौड़ै गरत्थ रे।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
काश जज्बात को लिखने का हुनर किसी को आता।
फिर से जिंदगी ने उलाहना दिया ,
वफ़ाओं की खुशबू मुझ तक यूं पहुंच जाती है,
*तू और मै धूप - छाँव जैसे*
बहुत सुना है न कि दर्द बाँटने से कम होता है। लेकिन, ये भी तो
हम बदल गये
पूनम 'समर्थ' (आगाज ए दिल)
जीवन साथी,,,दो शब्द ही तो है,,अगर सही इंसान से जुड़ जाए तो ज