थोड़ा सा ठहर जाओ तुम
थोड़ा-सा ठहर जाओ तुम
**********************
मंजिल है दूर बहुत,
साँझ भी ढ़ल रही है,
कुछ पल को….
थोड़ा -सा ठहर जाओ तुम |
ऐ -मेरे हमसफर -हमनवाज,
रैना भी बीत रही है,
चाँदनी भी विदा हो रही है,
तारे भी चल पड़े हैं,
कुछ पल को….
थोड़ा -सा ठहर जाओ ना,
ऐ -मेरे हमसफर -हमनवाज,
प्राची से उषा जागी है
अलसाई सी रश्मियों के संग,
जी भर के तेरा दीदार तो कर लूँ,
कुछ पल को….
थोड़ा -सा ठहर जाओ ना,
ऐ -मेरे हमसफर -हमनवाज,
मंजिल है दूर बहुत
साँझ भी ढ़ल रही है
शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली, पंजाब
©स्वरचित मौलिक रचना
06-02-2024