थी हरारत बस बदन को ,…..
70…
Ramal musamman mahzuuf
faa’ilaatun faa’ilaatun faa’ilaatun faa’ilun
2122 2122 2122 212
थी हरारत बस बदन को , हार ले के आ गए
तुम हवा कुछ बाहरी बीमार ले के आ गए
काट लाना था तुम्हे जो लहलहाती सी फ़सल
मुट्ठियों में तुम दबा बस ज्वार ले के आ गए
खास जब तकलीफ आई सामने उनको जरा
आप अपना राग सुर विस्तार ले के आ गए
ये सियासत नासमझ बन चौंक उठती बारहा
तुम कहीं खुदगर्ज से तलवार ले के आ गए
आज वादों से मुकरने की बनी गुन्जाइशें
सामने फिर इल्तिजा दो चार ले के आ गए
सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग.)
14.4.24