थमा गया
जाते जाते वो मुझको एक राज थमा गया
चश्म ए दीदार को आगाज़ थमा गया
फ़लक को छूने तक की दर्द ए दास्ताँ
इन महफूज़ परिंदों को बाज थमा गया
चींटी को बचाने की जद्दोजहद क्या की
रूह की तरूणाई को नासाज़ थमा गया
नासूर होने की हद तक सहलाता रहा
घावों के फफोलों को खाज थमा गया
सियासत तो लूटने की पूरी थी उसकी
जहालत को तजुर्बा ए अन्दाज थमा गया
मुफलिसी में भटकता रहा मैं दर बदर
निठल्लों की बिसात को काज थमा गया
बदक़िस्मती से कुछ तो हासिल हुआ मुझे
जुबाँ के झरोखे को अल्फ़ाज़ थमा गया
नसीहत का फ़लसफ़ा बनता गया रहबर
गर्दिशों में रहकर मुझको ताज थमा गया
भवानी सिंह “भूधर”
बड़नगर, जयपुर
दिनाँक-११/०४/२०२४