त्रिशरण गीत
बुद्ध की शरण में आए हैं,
अब यही कहते जाना है,
‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि’,
ज्ञान का दीप जलाना है।
बुद्ध ही हमारे ‘मैत्रेय’ हैं,
धम्म का मार्ग दर्शाते हैं,
‘धम्मं शरणम् गच्छामि’,
अब यही कहते जाना है।
बुद्ध करुणा के सागर हैं,
निर्वाण का ध्यान सिखाते हैं,
‘संघं शरणम् गच्छामि’,
अब यही कहते जाना है।
‘त्रिशरण’ को अपनाना है,
‘बोधिसत्व’ को है अब पाना,
‘बुद्ध’, ‘धम्म’,’संघ’ में है जाना,
‘पंचशील’ का ज्ञान है पाना।
मध्यम मार्ग अपनाना ,
त्रिशरण को आगे ले जाना ,
अब यही कहते जाना है ,
बुद्ध की शरण में आए हैं ।
✍🏼
बुद्ध प्रकाश;
मौदहा,हमीरपुर,
*** उत्तर प्रदेश।