त्रिपदिया
त्रिपदिया
तुझे देख कर मन मुस्काता।
खुले हृदय से प्रेम जताता।
मंत्र मुग्ध हो कर खो जाता।
तुम मेरे मोहक प्रियतम हो।
जीवन अर्पित प्रिय अनुपम हो।
स्नेहिल उर्मिल अति मनरम हो।
जब से तुम जीवन में आये।
खुल कर प्रेम गीत को गाये।
मादक भावुक सेज सजाये।
मेरे प्रियवर खुद आ जाना।
बिन संकोच स्वराज बताना।
आ कर नगरी सहज सजाना।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र,हरिहरपुर,वाराणसी-221405