त्रिपदिया
त्रिपदिया
जलता न कभी शिव मानव है।
छलता रहता कटु दानव है।
बनता सबका प्रभु -मानव है।
बहता जिसमें रस धार सदा।
वह मानव है दिलदार सदा।
करता सबसे नित प्यार सदा।
जिसका मन कोमल भावन है।
उसका हृद अमृत पावन है।
सब के प्रति शुद्ध सुहावन है।
जिसमें छल क्षद्म नहीं रहता।
हित की वह बात किया करता।
सुख में दुख में सग सा लगता।
अतिरेक नहीं करता मन जो।
प्रतिरोध नहीं करता ज़न जो।
जग का वह उत्तम मानव हो।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।