त्यौहार
त्यौहार
श्यामा आज काफी खुश थी क्योंकि आज दीवाली का त्योहार जो था, वो सोच रही थी आज झट से काम खत्म करके मालकिन से दीवाली का गिफ्ट लेकर अपने घर जाऊंगी और वहां अपने बच्चों के साथ दीवाली मनाऊंगी।
यही सब सोचकर उसने किचन का सारा काम जल्दी जल्दी निपटा दिया और फिर झाड़ू पोंछा लगाने लगी, कि तभी उसकी मालकिन मिसेज मेहता आई और एक नया ऑर्डर फरमा दिया।
मिसेज मेहता: (अपनी रौबदार आवाज में)एरी श्यामा सुन!…… इधर का सारा काम समेटने के बाद कपड़े भी धो देना……. मुझे दीवाली के त्योहार के मौके पर गंदे कपड़े नहीं रखने हैं घर में…….
श्यामा :(थोड़ा उदास होकर) जी मेमसाब……
अब श्यामा झाड़ू पोंछा लगाते हुए मन ही मन मेमसाब को कोसते हुए सोचने लगी कहां मैने सोचा था कि आज त्योहार है तो जल्दी घर जाऊंगी और बच्चों के साथ उत्सव मनाऊंगी लेकिन ये औरत है कि काम पर काम दिए जा रही है।
इसको कुछ सोच समझ है भी कि नहीं, या फिर ये सोचती है कि त्योहार उत्सव सिर्फ इन्हीं के लिए है ये हम जैसे छोटे लोगों के लिए नहीं होते। ऐसे मन ही मन कुडबुड़ाते हुए अब उसने झाड़ू पोंछा का काम खत्म करके बाथरूम में चले गई और कपड़े धोने लगी।
कुछ देर में वो काम भी खत्म करके श्यामा अब हाथ मुंह धोकर अपने पल्लू से चेहरा पोछते हुए तैयार हो गई थी अपनी मालकिन से दीवाली गिफ्ट लेकर अपने घर जाने के लिए।
श्यामा : मेमसाब मैं जा रही……
मिसेज मेहता : हां तो जा न……और सुन शाम को जरा जल्दी आ जाना…..दीवाली का त्योहार है तो घर में बहुत काम होगा…
श्यामा : (चौंक कर) लेकिन मेमसाब! मैं तो सोच रही थी आज शाम नहीं आऊंगी….वो दीवाली है न तो बच्चों के साथ……
मिसेज मेहता :(श्यामा की बात को बीच में ही काटकर) अरे नहीं आयेगी का क्या मतलब…… दीवाली में इतना काम रहेगा कौन करेगा ये सब…… मैं कुछ नहीं जानती तू आ जाना बस….
श्यामा :(ज्यादा कुछ नहीं बोलते हुए) मेमसाब…… मेरा दीवाली का गिफ्ट…….
मिसेज मेहता: हां हां!….. लेकिन अभी नहीं शाम को आएगी तब सोचूंगी……
अब श्यामा आगे कुछ न बोल सकी और चुपचाप दरवाजे से बाहर निकलकर अपने घर की ओर चलने लगी, रास्ते भर आंसू बहाते हुए वो यही सोचते जा रही थी कि अपने मासूम बच्चों को वो क्या मुंह दिखाएगी, त्यौहार में क्या वो उन्हें मिठाई और कपड़े भी नहीं दे पाएगी, क्या ये त्योहार उत्सव सिर्फ अमीरों के लिए ही बने हैं, हम छोटे लोगों का हक नहीं बनता कि हम भी अपने परिवार के साथ ये त्योहार मनाएं।
“अमीर हों या गरीब ईश्वर ने त्यौहार पर्व सभी के लिए बनाएं हैं जिसमें खुशियां पाने का हक सभी को एक समान है। अमीर और सम्पन्न वर्ग को चाहिए कि गरीबों की थोड़ी मदद करके इनके साथ कुछ खुशियां बांटे जिससे वे भी अपने परिवार के साथ त्यौहार मनाकर कुछ खुशियां पा सकें, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा हो नहीं पाता और त्यौहारों में अमीर जहां खुशियां मनाते रहते हैं तो गरीब उन्हें देखकर अपनी लाचारी और बदकिस्मती पर आंसू बहाते हैं।”
✍️मुकेश कुमार सोनकर “सोनकरजी”
रायपुर,छत्तीसगढ़