त्याग
क्षमा, दया, तप औ त्याग,
ये जीवन के परम आचार,
काम, क्रोध, मद औ लोभ,
ये सब हैं, नरक के द्वार,
जिसने किया त्याग-बलिदान,
उनका जीवन बना महान्,
त्याग दिया प्रभु ने गद्दी को,
बने मर्यादा पुरुषोत्तम राम,
त्याग दिया सिद्धार्थ ने गृह को,
बन गए महात्मा बुद्ध महान्,
त्याग के मीरा राजमहल को,
पाया जग में उसने सम्मान,
त्याग दिया अंग्रेजों के पद को,
लड़ा सपूतों ने स्वतंत्रता-संग्राम,
त्याग दिया वीरों ने जीवन को,
स्वतंत्र हुआ प्यारा हिंदुस्तान,
आवश्यक है अब स्वार्थ का त्याग,
धन-लोलुपता, भ्रष्टाचार का त्याग,
दें त्याग यदि सारी कुरीतियांँ,
बन जाए हिंद, विश्वगुरु महान्।
मौलिक व स्वरचित
श्री रमण ‘श्रीपद्’
बेगूसराय (बिहार)