त्याग के देवता
मूर्ति साहब व्यवहार कुशल व्यक्तित्व थे। उनके विचार इतने नेक थे कि कुछ मिनट में ही लोग उनसे प्रभावित हो जाते थे। उनको जनरल मैनेजर होने का रत्ती भर घमण्ड नही था। जितना सम्मान अपने सीनियर ऑफिसरों को देते है उससे कही ज्यादा सम्मान अपने से नीचे वालो कर्मचारियों को देते थे। मूर्ति साहब अपनी विनम्रता के लिए पूरे धागे फैक्टरी में प्रसिद्ध थे। मूर्ति साहब के विनम्र व्यवहार से भी कुछ लोग उनसे ईर्ष्या रखते थे, जिसमें से एक थे उनके सीनियर भंडारी साहब । भंडारी साहब मूर्ति साहब को नीचा दिखाने का कोई अवसर नही छोड़ते। आये दिन भंडारी साहब मूर्ति साहब के काम करने के तरीकों गलत बताते और उनको कंपनी से बाहर का रास्ता दिखाने के फिराक में रहते थे, सबकुछ जानते हुए भी मूर्ति साहब भंडारी साहब से कोई गिला-शिकवा नही रखते थे। अचानक से 2020 में कोरोना महामारी आ गयी सबकुछ अनियंत्रित होने लगा। उसमे मज़दूरों का पलायन सबसे बड़ी समस्या थी। मज़दूरों के पलायन से फैक्टरी पर ताला लगने की नौबत आ गई। कुछ मज़दूरों को साथ लेकर मूर्ति साहब ने फैक्टरी को चालू रखे-रखा। जब स्थिति कुछ ठीक हुई तो गाँव से मज़दूर वापस फिर से फैक्टरी आना शुरू हुए। भंडारी साहब ने सबको एक ही फरमान सुनाया की जो मज़दूर कोरोनकाल में कंपनी छोड़ कर भाग गए थे, उनको वापस कंपनी ड्यूटी पर नही लेगी। ये सुन कर मज़दूरों में हाहाकार मच गई कि अब क्या होगा सभी मज़दूर भागे-भागे मूर्ति साहब के पास गए।
मूर्ति साहब ने सभी मज़दूरों को आश्वस्त किया कि किसी की नौकरी नही जाने दूँगा यदि ऐसा होता है तो सबसे पहले मैं त्यागपत्र दूँगा। मूर्ति साहब फैक्टरी के मालिक सहाय जी से बात करते है तो सहाय साहब दो टूक जवाब देते है कि कोरोनकाल में भीषण आर्थिक मंदी होने से मैं अब ज्यादा मज़दूर फैक्टरी में नही रख सकता जीतने है उनसे ही काम चलाओ। भंड़ारी साहब भी सेठ के हां में हां मिलाते हुए कहते है कि सर जितने मज़दूर है उनसे काम चला लेंगे। ये सुन कर मूर्ति साहब दुखी मन से एक बार फिर सहाय साहब से आग्रह करते तो बीच में ही भंडारी साहब टोकते हुए बोलते है कि फिर आप नौकरी से त्यागपत्र दे-दे तो हम उन सभी मज़दूरों को वापस ड्यूटी पर रख लेंगे। मूर्ति साहब बिना एक पल गंवाये त्यागपत्र मालिक के टेबल पर रख कर चले जाते है। मज़दूरों से मूर्ति साहब कहते है कि आप सबकों कंपनी ने फिर से नौकरी पर रख लिया है। मज़दूरों में खुशियों की लहर दौड़ जाती है मूर्ति साहब के नाम के जयकारे लगने लगते है। जब मज़दूरों को मालूम पड़ता है कि मूर्ति साहब ने अपनी नौकरी का बलिदान देकर उनकी नौकरी बचाई है तो सभी के आंखों से कृतय अश्रुधारा बहने लगती है। फैक्टरी में सभी मज़दूर मूर्ति साहब से कहते है कि हम हड़ताल करेंगे लेकिन मूर्ति साहब कहते है कि आपलोग ऐसा कुछ नही करेंगे जिससे मेरे सम्मान को ठेस पहुँचे। मूर्ति साहब नौकरी छोड़ यूपी में अपने गांव चले आते है कुछ समय बाद ही यूपी में पंचायत चुनाव होते है और मूर्ति साहब अपने गांव में निर्विरोध सरपंच चुन लिए जाते है। आज मूर्ति साहब अपने गांव की जनता की सेवा निःस्वार्थ भाव से कर रहे है। भंडारी साहब को आज भी अपने कृत्य पर ग्लानि है।
स्व रचित एवं मौलिक
आलोक पांडेय गरोठ वाले