त्यागने से जागने की ओर – रविकेश झा
त्यागना और देखते रहना, दोनों को समझना होगा, त्यागने में दो की जरूरत होती है। एक त्यागने वाले और एक वस्तु या व्यक्ति जिसे त्यागना है,और जो जागता है वो देखता रहता है सिर्फ एक देखने वाले बचता है लेकिन ये सब ध्यान से स्पष्ट हो जाता है। जागरूकता एक ऐनक की तरह है जब लगाया ऐनक सब सामने स्पष्ट हो जाता है।
ध्यान में आप भी आ सकते हैं प्रतिदिन आप जीवंत हो सकते है। और ध्यान के रास्ते पर चलकर आप आनंदित महसूस करेंगे। बस भागना नहीं है मानना नहीं है बस जागना है और धैर्य के साथ जीवन को जीना है। मुश्किल तो है लेकिन एक दिन आप भी देख सकते है चेतना आपके अंदर बह रहा है बस इसे स्वीकार करना होगा, देखना होगा जीवन के हर पहलू को जानना होगा।
ध्यान में आप प्रतिदिन जी सकते हैं बस निर्णय आपको करना होगा, क्योंकि जीवन आपका है चाहे अभी आप बेहोश में जी रहे हैं लेकिन होश भी तो आपके पास है बस उसे जुड़ना होगा। फिर आप भी खिल उठेंगे, जाग जायेंगे, निरंतर अभ्यास से आपको सब समस्या हल होगा। शुरू में परेशानी होगा लेकिन आप भी पहुंच सकते हैं।
आपको हैरान होना होगा तभी आप भी देख सकते हैं चारों तरफ देखना होगा, जो घट रहा है उसे देखना होगा,जो प्रतिपल हो रहा है उसका शाक्षी बनना होगा बस। जो भी प्रतिदिन होता है उसे ईमानदारी से देखना होगा। और आप स्वयं खिल उठेंगे बस जागरूकता को मित्र बना के रखना है और निरंतर अभ्यास करना है। त्यागना नहीं है जागना है बस जागना होगा।
त्याग आपको जगा नहीं पाएगा, बस भगौरा हो जाओगे लेकिन फल नहीं देख पाओगे, जागने का अपना फल है। और भागने का अपना, चयन आपको करना होगा। क्रोध आ सकता है भागने का मन होता होगा, लेकिन स्वयं को टटोलना है प्रश्न पूछना होगा, स्वयं के अंदर आना होगा, शुरू में त्याग का मन हो सकता है लेकिन याद रहे जहां आप जाओगे वहीं सब पाओगे। इससे अच्छा है जहां हो वहीं के हो जाओ। वर्तमान में आ जाओ।
तभी आप अपने आप खिल उठेंगे और निरंतर जागते रहेंगे। जीवन को एक दिशा देना होगा रूपांतरण करना होगा। सभी चीजों से अलग करना होगा लेकिन याद रहे बाद में यह सब स्वयं जुड़ सकता है, लेकिन शुरू में सबको अलग करना होगा। तभी आप पूर्णतः आनंदित होंगे।