तौहीन
तौहीन न करो इन जुल्फों की,
लटूरे कहकर ।
कभी इन गेसुओं में,
तुम भी उलझा करते थे ।
हम बुढिया गये तो क्या हुआ ?
आज भी हजारों आशिक है मेरे मयखाने के ।।
डां. अखिलेश बघेल
दतिया (म.प्र.)
तौहीन न करो इन जुल्फों की,
लटूरे कहकर ।
कभी इन गेसुओं में,
तुम भी उलझा करते थे ।
हम बुढिया गये तो क्या हुआ ?
आज भी हजारों आशिक है मेरे मयखाने के ।।
डां. अखिलेश बघेल
दतिया (म.प्र.)