तो क्या
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सतरंगी है जीवन यारों, गम खुशियों की थाली होगी।
कहीं खुशी, गम, दर्द मिलेगा, रात कहीं कुछ काली होगी।
पतझड़ का मौसम कुछ पल का, तो क्या बंद चहकना कर दें-
फिर वासंती ऋतु आएगी, फिर से तो हरियाली होगी।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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