तो कहना…!!
तो कहना….!!
ज़िन्दगी
मिलना चाहती है
हृदय खोल कर
अपनी बाँहें फैला कर
कहना चाहती है
बहुत कुछ अपने आसपास
बिखरे हुए के बारे में,
कभी सुना है
सागर का अट्टहास
कभी अनुभव की है
उसके भीतर की शांति
नदी की कलकल
झरने का झर झर गिरना
चिड़ियों की चहचहाट से
निकलता संगीत
नील गगन का अनंत विस्तार
वसुधा की सहनशीलता
चारों ओर बिखरे
असंख्य रंग
दिनमणि का उदय-अस्त
उसकी तीव्रता
मयंक की शीतलता में
तारों की बिछी चादर को
निर्निमेष निहारना
कब से अनुभव नहीं किया
चिंतन का विषय है,
बताओ भागादौड़ी की
इस ज़िन्दगी में
कभी धमाचौकड़ी, आइस पाइस
बचपन का एकदूसरे को
पीछे से धप्पा कह देना
कहाँ छूट गया?
बुलाती है जब ज़िन्दगी
सब कुछ ताक पर रख
खुल कर मिलो उससे
करना अनवरत संवाद भी तो
वो अनमोल क्षण होंगे
जो परिवर्तित होते चलेंगे
नवीन स्वरूप में,
जब ज़िन्दगी
गले से लगा कर
जादू की झप्पियाँ देते हुए
कानों में धीमे से कहेगी
कर्म की निरंतरता में निहित है
सफलता का मनोरम संगीत
तब मन वीणा के तार
झंकृत न हो जाएँ
तो कहना….!!!!!
#डॉभारतीवर्माबौड़ाई