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13 Jul 2021 · 1 min read

तोड़कर अनुबन्ध

गीत
—–
तोड़ कर अनुबन्ध मन के, तुम गये हो जिस नगर में
उस नगर के फूल सारे रातरानी हो गये हैं
इस नयन के कोर से ढलके थे जो खारे पनारे
वो नदी की धार की सूखी निशानी हो गये हैं

देख कर तुमको वहाँ पर झूमतीं चारों दिशाएं
ओढ़नी की गंध लेकर हैं महक जातीं हवाएं
अप्सराएं हाथ बाँधे गीत स्वागत में सुनाएं

हैं मगन धरती-गगन और वन हुआ मधुवन सरीखा
तितलियों के भी परों के रंग धानी हो गये हैं

तोड़ कर अनुबन्ध मन के……..

तुम यहाँ से क्या गये, सपने तिरोहित हैं प्रणय के
शूल सा हर फूल पा कर अश्व विचलित हैं हृदय के
इन विरह के आँसुओं में धँस गये पहिये समय के

मैं अचम्भित कर्ण सा, रण बीच कर बाँधे खड़ा हूँ
प्रीत के भी गीत करुणा की कहानी हो गये हैं

तोड़ कर अनुबन्ध मन के………

जो करे जग को प्रकाशित, तुम वो हीरे की कनी हो
सृष्टि की शोभा, अतुल शृंगार ले कर तुम बनी हो
इस धरा पर कौन है जो रूप में तुम सा धनी हो

जो ‘असीम’ अपनी चमक खो कर दराजों में पड़ी हो
हम लड़कपन की अँगूठी वो पुरानी हो गये हैं

तोड़ कर अनुबन्ध मन के……….

©️ शैलेन्द्र ‘असीम’

Language: Hindi
Tag: गीत
2 Comments · 371 Views

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