तेवरी
प्रेमी ही बन जाता बाज़
अपना बनकर लूटे लाज। होता आज।।
उतना ही बदसूरत अंत
जितना सुंदर हो आगाज़। होता आज।।
सच की झट हो जाती मौत
झूठ दीखता उम्रदराज। होता आज।।
वही निकलता छल का रूप
जिसके ऊपर जितना नाज़। होता आज।।
उतना ही बढ़ता विद्रूप
जितना करिए और इलाज़। होता आज।।
*रमेशराज