तेरे साथ गुज़रे वो पल लिख रहा हूँ..!
तेरे साथ गुज़रे वो पल लिख रहा हूँ
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल लिख रहा हूँ!
मुझे माफ़ करना बिना तुझ से पूछे
तेरी ज़िन्दगी में दख़ल लिख रहा हूँ!
नज़र भर जरा देख बंज़र ज़मीं पर
मुहब्बत की खिलती फ़सल लिख रहा हूँ!
तेरी उलझनें सब मुझे सौंप दे तू
उन्हीं उलझनों का मैं हल लिख रहा हूँ!
रुआबी सी आँखें..,वो लब पंखुड़ी से..!
तुझे एक खिलता कमल लिख रहा हूँ!
मिसालें मेरी लोग देंगें जहाँ में..,
मुहब्बत में ऐसी पहल लिख रहा हूँ!
हमेशा मेरी थी….., मेरी ही रहोगी…,
किताबों में ऐसा अटल लिख रहा हूँ!
नया कुछ नहीं बस पुरानी हैं यादें
उन्हें सोच कर आजकल लिख रहा हूँ!
तज़र्बा न पूछो.., मुहब्बत का मुझसे,
वो बनते बिगड़ते महल लिख रहा हूँ!
कहानी अज़ब है.., “परिंदे” की यारो…!
वो गुजरा हुआ सा मैं कल लिख रहा हूँ!
पंकज शर्मा “परिंदा”