तेरे भीतर ही छिपा,
तेरे भीतर ही छिपा, खोया हुआ सकून
ग़ैरों ने दी उलझनें, अपनों ने नाख़ून
अपनों ने नाख़ून, ज़ख़्म गहरे बने हैं
ले लेंगे अब जान, घाव नासूर घने हैं
महावीर कविराय, चैन जो खोये अक्सर
ढूँढो न कहीं ओर, छिपा वो तेरे भीतर
–महावीर उत्तरांचली