तेरी हँसी
इतनी जोर का
अट्टहास मत कर
तेरी हंसी में
असंख्य लोगों का रुदन
सुनाई देता है मुझको
और फिर
यह अमानवी हँसी
तेरी अपनी भी तो नहीं
अन्यथा
तुझे मात्र अमानव कहना ही समुचित होता,
परन्तु !
यह हँसी
तो
उन बेवस लोगों के हिस्से की है
जिन्हें हँसे
मुद्दतें हो गईं
पत्थर हो चुके पद
जिनके पाँव में
अब काँटा भी नहीं चुभता,
जिनकी सारी ज़िन्दगी
और हर आशा
सिमट कर रह जाती है
अपनी झोंपड़ी
और
खेतों के मध्य ।
जिनके स्वप्न पूरे होने से पहले
उनकी उम्र पूरी हो जाती है
यह हंसी उनके
हिस्से की है
जिनका स्वयं अपने हाथोंसे
बनाया हुआ खाना है भी
उन तक पहुँचता पहुँचता
रसहीन हो जाता है
यह सब कुछ
जानता हुआ भी
मैं यह कैसे कह दूँ
कि यह हँसी तेरी अपनी है
केवल अपनी,
परन्तु …..ऐसा भी नहीं
कि
तेरी इस हँसी का
कोई समाधान नहीं
है तो सही, मगर अकेला हूँ अभी
और
यह अकेले का काम नहीं
तुम सभी
संग चलो मेरे
केवल तभी
लौटा सकूँगा
खोई हँसी
वापस उनको
जिनका रुदन सुनाई देता है मुझको,
इतनी जोर का अट्टहास मत कर
तेरी हंसी में
असंख्य लोगों का रुदन सुनाई देता है मुझको ।