तेरी मेरी यारी- मुक्तक माला
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कागज गौर वर्ण का जैसे राधाप्यारी है।
स्याहीयुक्त कलम जैसे कृष्णमुरारी है।
सदा ही नवरस रूपी नवरंग की निष्पाती,
बरसाना गाँव जैसा तेरी मेरी यारी है।1।
खुशियाँ चाहे कोई गम हमारी
तुझ से ही करूँ मैं साझेदारी।
ऐ कलम, दवात कागज औ स्याही –
रहे हर पल तेरी मेरी यारी।2।
तू आशीर्वाद माँ सरस्वती की।
आदत हो गई मुझको लिखने की।
तू ही इश्क, इबादत, ताकत, बनी –
तू जुनून, तू खुदा मेरे मन की।3।
तू ही मेरी सच्ची सखी सहेली है।
जानती मेरे मन की हर पहेली है।
तू ही शब्दों में सामर्थ्य भरती, रहती-
जज्बातों को कागज पर उढेली है।4।
जीवन में नित आशा को जगाती है।
मेरे जख्मों पे मलहम लगाती है।
हर अहसासों को लब्ज देती है जो-
मेरी हर दुख दर्दों को भगाती है।5।
ख्वाब के बादल पर उड़नेवाली है।
मन के तारों को जोड़नेवाली है।
परत-दर-परत को हटाती है हरदम-
दिल की राजों को जाननेवाली है।6।
अकेलेपन में जो साथ निभायी।
हर सुख-दुख में भी रिश्ता निभायी।
कभी करती मुझसे हँसी मस्खरी –
यारी सार्थकता बखूबी निभायी।7।
तेरे जैसी कोई नहीं प्यारी ।
तुझ सा नहीं किसी की भागीदारी ।
बिना किसी लाग लपेट के हरदम-
काव्य सरिता बहती रहे हमारी।8।
????—लक्ष्मी सिंह ?☺