Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
13 Jun 2024 · 1 min read

*तेरी मेरी कहानी*

लेखक डॉ अरूण कुमार शास्त्री पूर्व निदेशक आयुष दिल्ली
विषय उधेड़बुन
विधा कविता स्वच्छंद
शीर्षक मति की गति

मानव जीवन की गति रहती सदा उधेड़बुन में है ।
चिंता में डूबा हुआ पूरा व्यक्तित्व इसका ध्यातव्य है।

पैदा होते ही लगा इसे भूख का रोग ।
माता पिता के आसरे गुजरा इसका लड़कपन सुयोग ।

फिर आई युवावस्था घेरे रहती रोजी रोटी कमाने की व्यवस्था।
शिक्षा लौकिक संस्कृति देती न कोई सुदृढ़ अवस्था।

उधेड़बुन होती शुरू मस्तिष्क खिन्न हो जाता है।
रोटी कपड़ा और मकान संग चार का पेट जुड़ जाता है।

कोसता रहता समाज को जिस पर कोई बस नहीं।
अपने सामर्थ्य से अधिक इसे किसी और पर भरोसा नहीं।

सोच – सोच कर ये बौड़म नशे में डूब जाता है।
उधेड़बुन में पहले से भी ज्यादा उलझ जाता है।

सौभाग्य प्रारब्ध अदृश्य होता है ईश्वर क्या सच में कुछ करता है?
मानव मन ये सोच – सोच कर भाई आधा पागल हो जाता है।

मेरी तो चलती नहीं , बड़ा हुआ तो जरूर लेकिन कोई सुनता नहीं।
शिक्षा पद से कोई लेना देना नहीं, व्यवहार कुशल राजनीतिज्ञ होना जरूरी।

ये निकाले आपको पीछे हो चाहे सैंकड़ों झमेले।
जिंदगी में कोई मुकाम बना कर चलोगे तो फिर उधेड़बुन उतनी न होगी ।

कंटक रहित न सही जीवन पर अधिकांश प्रभाव ही रहेगी।
सलाह है मुफ़्त की बात है ये काम की , यूं जिंदगी का क्या ये तो चलती रहेगी?

©️®️

100 Views
Books from DR ARUN KUMAR SHASTRI
View all

You may also like these posts

कविता
कविता
Nmita Sharma
"शायद"
Dr. Kishan tandon kranti
तेरे बिछड़ने पर लिख रहा हूं ग़ज़ल की ये क़िताब,
तेरे बिछड़ने पर लिख रहा हूं ग़ज़ल की ये क़िताब,
Sahil Ahmad
सजी सारी अवध नगरी
सजी सारी अवध नगरी
Rita Singh
ग़ज़ल __गुलज़ार देश अपना, त्योहार का मज़ा भी ,
ग़ज़ल __गुलज़ार देश अपना, त्योहार का मज़ा भी ,
Neelofar Khan
हत्या
हत्या
Kshma Urmila
ये ज़िंदगी.....
ये ज़िंदगी.....
Mamta Rajput
*धन्य-धन्य वे जिनका जीवन सत्संगों में बीता (मुक्तक)*
*धन्य-धन्य वे जिनका जीवन सत्संगों में बीता (मुक्तक)*
Ravi Prakash
गौतम बुद्ध के विचार --
गौतम बुद्ध के विचार --
Seema Garg
मेरा तेरा जो प्यार है किसको खबर है आज तक।
मेरा तेरा जो प्यार है किसको खबर है आज तक।
सत्य कुमार प्रेमी
क्या कीजिए?
क्या कीजिए?
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
ज़िन्दगी को समझते
ज़िन्दगी को समझते
Dr fauzia Naseem shad
अपना सकल जमीर
अपना सकल जमीर
RAMESH SHARMA
*बता दे आज मुझे सरकार*
*बता दे आज मुझे सरकार*
Dushyant Kumar
निराला का मुक्त छंद
निराला का मुक्त छंद
Shweta Soni
तुम बिन
तुम बिन
Vandna Thakur
वह है बहन।
वह है बहन।
Satish Srijan
तुम से ही तुम्हारी मुलाकात
तुम से ही तुम्हारी मुलाकात
MEENU SHARMA
आने वाला कल
आने वाला कल
Kaviraag
जिन्दगी के किसी कोरे पन्ने पर
जिन्दगी के किसी कोरे पन्ने पर
पूर्वार्थ
हिंदी दिवस पर एक आलेख
हिंदी दिवस पर एक आलेख
कवि रमेशराज
मदर इंडिया
मदर इंडिया
Shekhar Chandra Mitra
काश तुम समझ सको
काश तुम समझ सको
sushil sharma
वीरांगना दुर्गावती
वीरांगना दुर्गावती
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
Poem
Poem
Prithwiraj kamila
मैं चाहता हूं इस बड़ी सी जिन्दगानी में,
मैं चाहता हूं इस बड़ी सी जिन्दगानी में,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
फनीश्वरनाथ रेणु के जन्म दिवस (4 मार्च) पर विशेष
फनीश्वरनाथ रेणु के जन्म दिवस (4 मार्च) पर विशेष
Paras Nath Jha
यूँ ही बीतते जाएंगे
यूँ ही बीतते जाएंगे
हिमांशु Kulshrestha
सत्य परख
सत्य परख
Rajesh Kumar Kaurav
नव वर्ष पर सबने लिखा
नव वर्ष पर सबने लिखा
Harminder Kaur
Loading...