तेरी नादाँ समझ को समझा दे अभी मैं ख़ाक हुवा नहीं
तेरी नादाँ समझ को समझा दे अभी मैं ख़ाक हुवा नहीं
नींद से पहले दुवां भी मांग लेना अभी मैं राख हुवा नहीं
कोई बादशाहत कायम करने का तो शौक नहीं था मुझे
कई शाहपरस्त है ज़मी पर मेरे अभी पर्दा-ताक हुवा नहीं
मत सोचना मेरी ख़ामोश जुबाँ को के ये संगीन जुर्म मेरा
तेरे क़ातिल शोर भी गूंजते है यहाँ अभी मैं चाक़ हुवा नहीं
जब तुझे ही ख़जालत नहीं थी फिर मैं भी बदनाम ही सही
अगर साजिशें चली है तो मेरा भी इरादा अभी नेक हुवा नहीं
अगर वो चाँद मांगता तो मैं सितारो भरा आसमाँ दे देता
क्या कहे छुपाके कुछ जुगनू ले गया मैं तो फ़ाक हुवा नहीं
🔘-‘अशांत’ शेखर