तेरी तस्वीर बनाने में
मिल बैठे हमसे वो इक दिन, यूँ ही बस अनजाने में,
जब तनहा सा मैं बैठा था, किसी रोज मयखाने में।
मैं बोला कुछ पल रुक जा, रेखा-चित्र बनाने दे,
पर क़ुदरत से कुछ रंग चुरा लूँ, तेरी तस्वीर बनाने में।
मिल बैठे हमसे वो इक दिन, यूँ ही बस अनजाने में,
जब तनहा सा मैं बैठा था, किसी रोज मयखाने में।
मैं बोला कुछ पल रुक जा, रेखा-चित्र बनाने दे,
पर क़ुदरत से कुछ रंग चुरा लूँ, तेरी तस्वीर बनाने में।