“तेरा चेहरा”
तेरा चेहरा
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आंखें जब भी खोलूं मैं
तेरा ही चेहरा दिखता है,
मासूम अदा वो भोला पन
नैनों में अब तो बसता है।
कुछ ऐसी अदाएं हैं तेरी
अपनी खबर तक नहीं रही,
ख्वाबों में तो हो ही तुम
दिन में भी तसव्वुर रहता है।
पढ़ने को तो यूं हमने भी
कुछ एक जमातें पढ़ ली हैं,
क्या बात है तेरी आंखों में
जाने बे क्या कह जाती हैं?
मासूम सा चेहरा जब तेरा
मेरी आंखो के आगे आता है,
एक मीठा सा एहसास मुझे
जान ए जां देकर जाता है।
मद भरे रसीले ये अधर तेरे
सुर्खी लाली की लिए हुए,
खुलते हैं जब कुछ कहने को
बस पागल ही कर जाते है।
रूप तेरा ओ अल्हड़ बाला
कुछ ऐसा प्यारा लगता है,
हो जैसे प्रियतमा मेरी
कायनात हिलाने आई है।
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट