तेरह ग्यारह क्रम रहे (दोहे)
तेरह ग्यारह क्रम रहे,चरण चार पहचान!
शिल्प भाव लय के बिना,दोहा है बेजान!!
दोहा ऐसा चाहिए,….. मेरे सखा सुजान !
कानों को मीठा लगे, मिले हमें कुछ ज्ञान !!
भाव- शब्द की खोज में,कटे समूची रात !
श्वांस श्वांस पोहे मना ,..दोहो में जज्बात !!
प्रेरक हो सन्देश कुछ,…नहीं सिर्फ उपदेश !
दोहा लिखना चाहिए, अनुपम हमें ” रमेश” !!
रमेश शर्मा.