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10 Aug 2024 · 1 min read

तृषा हुई बैरागिनी,

तृषा हुई बैरागिनी,
भ्रमित हुए शृंगार ।
जैसे-जैसे दिन ढला,
रैन बनी अंगार ।।
सुशील सरना / 10-8-24

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