तू फितरत ए शैतां से कुछ जुदा तो नहीं है तू फितरत ए शैतां से कुछ जुदा तो नहीं है मत कर गुमां ए इंसा, कि तू खुदा तो नहीं है डॉ तबस्सुम जहां