तू घर पर काम ही क्या करती है ?
सुबह होती है ,शाम होती है ,
उसकी जिंदगी यूं ही तमाम होती है ।
सुबह से रात तक घर का मेनु ,
सोचने में ही बुद्धि जाम होती है ।
घर को सुव्यवस्थित रखने और ,
साफ सफाई करने में शाम होती है ।
बर्तन धोना और रैक पर लगाना ,
कपड़े धोना ,सुखाना और संभालना,
सारा दिन कुछ न कुछ काम करती है ।
कोल्हू के बैल की तरह वो आराम छोड़कर,
दिन भर घर पर बिन तनख्वाह खटती है ,
फिर भी घरवालों से सुनती है ।
” तू घर पर काम ही क्या करती है?”