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25 Sep 2024 · 1 min read

*तू और मै धूप – छाँव जैसे*

तू और मै धूप – छाँव जैसे
***********************

तू और मै धूप-छाँव जैसे,
शहरों से दूर हो गाँव जैसे।

करते भला हम प्रेम कैसे,
हम थे नहीं तेरे पाँव जैसे।

ऊँची बोली में बात करो मत,
खटकें बातें काँव-काँव जैसे।

सही सलीके दो बोल बोलिये,
शब्द तेरे हैँ झाँव-झाँव जैसे।

मनसीरत मन रह गया प्यासा,
खाली हो गये द्वार दाँव जैसे।
************************
सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)

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