*तू और मै धूप – छाँव जैसे*
तू और मै धूप – छाँव जैसे
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तू और मै धूप-छाँव जैसे,
शहरों से दूर हो गाँव जैसे।
करते भला हम प्रेम कैसे,
हम थे नहीं तेरे पाँव जैसे।
ऊँची बोली में बात करो मत,
खटकें बातें काँव-काँव जैसे।
सही सलीके दो बोल बोलिये,
शब्द तेरे हैँ झाँव-झाँव जैसे।
मनसीरत मन रह गया प्यासा,
खाली हो गये द्वार दाँव जैसे।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)