तूफान अक्षि
उस दिन करीब 2:30 बजे मैं अस्पताल के आकस्मिक कक्ष के शांत वातावरण में ड्यूटी पर बैठा था तभी दो व्यक्ति एक एक कद्दावर व्यक्ति को उसके कंधों के बल उठा कर खींचते हुए मेरे कक्ष में लेकर आए और घबराए हुए स्वरों में बोले
‘ वकील साहब को गोली लगी है ।’
मैंने तुरंत उठकर उनको बराबर वाले वार्ड में लिटाने के लिए कहा और देखा कि कक्ष के द्वार की चौखट पर हमारे वरिष्ठ सर्जन मेरे सहयोग के लिए सजग खड़े थे । इमरजेंसी कक्ष के बाहर करीब 60 – 70 वकील वकीलों का जमावड़ा था । हम दोनों ने तुरंत वार्ड में जाकर उनको प्राथमिक उपचार देना शुरू कर दिया ।
अभी उनका उपचार कर ही रहे थे कि 4 – 5 पुलिस वाले एक चुटैल को लेकर मेरे पास आए और उन्होंने बताया कि इसी व्यक्ति ने इन वकील साहब को गोली मारी है । मैंने तुरंत उनको उसी के बराबर में एक दूसरे वार्ड में लिटवाने लिए कहा और स्टाफ को उसका प्राथमिक उपचार शुरू करने के लिए कहा ।
इस बीच मेरी निगाह अस्पताल के प्रांगण और वार्ड के बाहर गैलरी आदि स्थानों पर पड़ी तो मैंने पाया की इस बीच वकीलों संख्या बढ़कर करीब 500 हो कर पूरे परिसर को घेरे हुए उत्तेजित अवस्था में शोर कर रही थी ।
हमारे चिकित्सीय दल को गोली लगे मरीज के अथक उपचार में लगे अभी 10 मिनट भी नहीं बीते थे कि मरीज थी हृदय गति समाप्त हो गई और वो काल कवलित हो गया ।
उसे मृत घोषित कर मैं अपने कक्ष में आकर बैठा ही था कि 10 – 15 लोग मेरे कमरे में आए और उन्होंने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा
‘ जिसने हमारे हमारे वकील साहब की गोली मारकर हत्या की है आप उसको इलाज दे रहे हैं ! हम आपको उस अपराधी की उसकी जान बचाने का प्रयास नहीं करने देंगे करेंगे ।’
और फिर भी मेरे कक्ष का सामान इधर-उधर बिखरा कर फेंकते हुए बाहर चले गए । मैं शांत , निश्चल अपनी ड्यूटी पर अपनी कुर्सी पर बैठा रहा । बाहर भीड़ का कोलाहल गगनभेदी हो रहा था ।
इस बीच वार्ड बॉय ने मुझे आकर बताया कि साहब उन लोगों ने गोली मारने वाले व्यक्ति के बिस्तर को पलट दिया है उसको लगी ग्लूकोस आदि की बोतल नोच के हटा दी है और उसे जमीन पर गिरा कर पीट रहे हैं ।
मैं अपने कक्ष में अपनी कुर्सी पर बैठा खिड़की और दरवाजे के बाहर पूरे परिसर में चारों ओर फैली विस्तृत उत्पाती भीड़ के गगनभेदी प्रशासन विरोधी नारे लगती भीड़ के तांडव को सुन एवम देख रहा था ।
बाहर जितनी गड़बड़ थी मेरे करीब उतनी ही स्थिति शांत थी । करीब 1 घंटे से मैं यही सब देख रहा था तभी मैंने देखा कि पुलिस विभाग की कुछ जीपों में कुछ पुलिस वाले उस भीड़ को नियंत्रित करने के लिए अस्पताल के प्रांगण में फैल गए । पर उस भीड़ का अनियंत्रित उत्पात अपने चरम पर घटित हो रहा था । उग्र भीड़ ने उसकी पुलिस विभाग के द्वारा वीडियो रिकॉर्डिंग किए जाने पर उनके वाहनों एवं उस कैमरे को भी तोड़ डाला था ।
करीब आधे घंटे बाद मैंने देखा कि 2- 4 बड़े ट्रकों में भरकर पीएसी एवं त्वरित बल ( RAF ) के जवान अस्पताल के प्रांगण में उतर रहे हैं तथा उत्पाती भीड़ का घनत्व अब कम होता जा रहा है कुछ ही देर में लगा की अस्पताल छावनी में बदल गया है । भीड़ तितर-बितर हो गई है ।
मैंने वार्ड में भीड़ के द्वारा पीटे जाने के उपरांत उस चुटैल को देखने जब वार्ड में गया तो अब वह गहरी मूर्छा में चला गया था । उसकी देखभाल के लिए अपने अधीनस्थ स्टाफ को निर्देशित करता हुआ मैं वापस अपने कक्ष में आकर चिकित्सीय दस्तावेजों को तैयार करने में लग गया ।
मेरे लिए उस दिन का वह समय अत्यंत व्यस्तता और विस्मय से भरा बीत रहा था । इस सब कार्यवाही में व्यस्त होते हुए कब शाम के 7:00 बज गए मुझे पता नहीं चला ।
उस सांध्य बेला में मेरे कक्ष में जिला स्तर के आला अधिकारियों का एक दल विचार-विमर्श के लिए आया । वे सब आज की परिस्थितियों का विमोचन अपनी अपनी कुशलता के साथ बखान कर रहे थे । मैं उन लोगों के वार्तालाप का भागीदार ना होने के कारण उनके कथन को बेध्यानी से सुन रहा था । यह जानकर मुझे आश्चर्य हुआ जब कप्तान साहब ने बताया कि वे किस प्रकार वार्ड में स्थित एक खुली खिड़की से कूद कर भीड़ से अपनी जान बचाकर भागे और दौड़ते दौड़ते बाहर सड़क पर पहुंचे जहां उन्हें किसी वीवीआइपी के गनर ने मोटरसाइकिल पर बैठा कर पुलिस लाइन पहुंचाया जहां से वह सारी फोर्स इकट्ठा कर अस्पताल में पहुंचे।
आज मैं सोचता हूं कि जिन परिस्थितियों से निपटने में दक्ष पुलिस एवं प्रशासन के लोग अपनी जान बचाकर भाग रहे हों वहां आज भी एक चिकित्सक आला लिए डटा रहता है ।
उस दिन मुझे यह समझ में आया कि जब आप अनेक भीषण विपत्तियों या परिस्थितियों से घिरे हों तो उस अवधि में आप उन सबके बीच में शांत होकर में बैठ जाइए वे सभी विपत्तियां आपस में ही एक दूसरे से कट कर दूर हो जाएंगी । जैसे किसी चक्रवाती तूफान के केंद्र में ( तूफान अक्षि = in the centre of eye of the storm ) गति शून्य होती है जबकि उसके चारों ओर तीव्र बवंडर मचा रहता है ।
ऐसा लगता है कि इस भीषण वैश्विक कोरोना नामक महामारी से बचने के लिए यदि हम अन्तर्मुखी , आत्मकेंद्रित हो एकाकी , एकांत में निवास करेंगे तो यह परिस्थितियां अपने आप सरल हो जाएंगी ।