“तु…”
तु मेरी मोशिकी, तु ही मेरी धुन
दिल कोयल कुँहके तु भी सुन
मैं तुझे चाहुँ, गाऊँ, गुनगुनाऊँ
ऐसा समां तो कभी ना हुआँ
दिवाने दिल को लगी दुवाँ
नैनों ने सपनों को युँ छ़ूआँ
तु ही मेरा मर्ज़, तु ही दवाँ
तु मेरी ज़िंदगी, तु ही मेरी धड़कन
शायद इसेही कहते हैं प्यार
तीर ना ज़ाएँ कहीं दिल के पार
बेचैन मन को ना आये करार
तुझे मिलने को रहें बेकरार
तु मेरी आशिकी, तु ही मेरा जु़नून
लबों पे आई तु बनके गझ़ल
लिख़ रहा हूँ मैं तुझे आज़कल
दिल साहिल तु रहें हरपल
कैसे ना ज़ाएँ ये दिल भी फ़िसल ?
तु मेरी शायरी , तु ही कलम का ख़ुन
? गीतकार : – प्रदिपकुमार साख़रे
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