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11 Oct 2022 · 2 min read

तुला

शीर्षक
तुला

“देख नेहा,मैं फिर समझा रहा हूँ तुझे।हम दोनों भाग जाते हैं।”राहुल ने कहा
“राहुल ,हमारा भागना समस्या का समाधान नहीं है।तुम समझते क्यों नहीं?”नेहा तनाव में थी
“फिर और क्या समाधान है तू बता!तुझे लगता है तेरे घरवाले तेरी बात समझेंगे..जो तुझे बेटी ही नहीं समझते।”राहुल किंचितक्रोध से बोला।
“उसमें उनकी क्या गलती है राहुल।जो भी आता है मेरे रंग रूप को लेकर उन पर प्रश्नचिह्न लगा जाता है। नमन और स्वेता को देख .तीखे नयन-नक्श,बेदाग साफ गोरा रंग।और मैं….मैं जैसे उन दोनों पर लगा कोई दाग।”स्वेता के स्वर में हीनता बोध झलक रहा था।
“हद है ,जो मैं समझा रहा हूँ वह तू अच्छे से जानती है ..फिर भी मानना नहीं चाहती। नमन और स्वेता ने कभी दिया तुझे बड़ी बहन का दर्जा..?”
“राहुल ….।”नेहा आहत थी
“इसलिए बोल रहा हूँ ।मेरे साथ चल। अपनी दुनियाँ अलग बसायेंगे।”
“पर कैसे ?कोई नौकरी या धंधा है ?जीवन यापन सिर्फ भावना से नहींहोता राहुल ..एक समय मूल भूत आवश्यकतायें सारी भावना को मृत कर देती हैं।”
“अरे कर लेंगे कुछ न कुछ। हम दोनों ही पढ़े लिखे हैं। …”अपनी बात पर मुहर लगती देख उत्साहित हो बोला राहुल
“सॉरी राहुल…भले ही मेरे माँ-बाऊ जी मुझे नहीं चाहते।भले ही नमन,स्वेता बहन नहीं मानते।पर एक बात भूल रहे हो तुम ..।”नेहा थोड़ा रुकी ।राहुल ने सवालिया नज़रों से देखा
“..यही कि मुझे जन्म भी उन्होंनेदिया है,संस्कार भी ।शिक्षित भी किया है और निर्णय लेने की हिम्मत भी।क्या हुआ जो घर में सारा काम करना पड़ता है ..पर यही तो मेरे भावी जीवन को ठोस आधार देने मेंमदद भी करेगा। मैं उन की परवरिश पर एक और धब्बा नहीं लगाऊँगी।”नेहा के स्वर की दृढ़ता और चेहरे पर निश्चिंत मुस्कान ने राहुल के मंसूबों पर पानी फेर उसकी तरफ का तुला का हिस्सा झुका दिया था।
स्वरचित ,मौलिक
मनोरमा जैन पाखी
स्वरचित

Language: Hindi
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