तुम हो तुम्हारी यादें हैं
तुम हो तुम्हारी यादें हैं,
और क्या चाहिए,
हिज़्र है हिज़्र में भी मुलाकातें हैं
और क्या चाहिए।
कभी चांद सितारों की शीतलता,
कभी सूरज की गरमियाँ हैं।
कभी बाल-मन की उड़ानें,
कभी यौवन की मस्तियाँ हैं
कभी रेतीले सराब ही सराब,
कभी बारिशें दरिया समंदर हैं
कांटे-कांटे पे खिलें गुलाब,
हाथों में जुगनू, तितलियाँ हैं
धूप-छांव के उपहार हैं
खेत हैं खलिहान हैं,
बदलते मौसम वरदान हैं,
हर वक्त सर पर फहराया,
उम्मीदों का आसमान है,
मुफ़्त की सांसें चाहिए,
तुम हो, तुम्हारी यादें हैं,
और क्या चाहिए।
रास्ते उलझे अनजान,
किंतु यात्राएं तय हैं,
पत्थर की लकीर-सा है जन्म-मृत्यु,
सांसें मिली हैं गिन-गिन कर,
घटती रहती पल-पल, क्षण-क्षण,
किसी के लिए खेल-खेल में जीवन,
किसी के लिए मुसीबतों का अंबार,
कोई परिपाटी के तटबंधों में फंसा,
किसी के लिए खुला आकाश,
हृदय दौलतों से भरा रहे,
मुठ्ठी खाली थी खाली रहे,
न काया का अभिमान चाहिए,
न श्रृंगार गुणगान चाहिए,
तुम हो, तुम्हारी यादें हैं,
और क्या चाहिए।
-✍श्रीधर.