तुम ही हो
तुम ही हो
मेरे तन्हा सफर की साथी
रिश्तों ने जब मुझे नकारा
ज़िन्दगी से मुख मोड़ कर
निकल पड़ी थी शांती तलाशने
नाली के किनारे तुम सिकुड़ी
तन्हा अपनों की याद में रो रहीं थीं
अपना इरादा बदल कर
गोद में लिया और घर आ गयी
भूख से थी व्याकुल दूध पीते ही
उछल कूद करने लगी
कभी कांधे पर तो कभी
मेरे हाथ से पंजा मिलाने लगी
जैसे कह रही हो दे ताली
ओ लाली तेरी तन्हाई दूर
करने वाली अब आ गयी है
मेरी आंखों से बहते अश्कों की बूंदे
अब थम सी गयी लब मुस्कुरा उठे
तन्हाइयों की जलन पर तू जैसे
मरहम बन कर छा गई है
मैं तो हार बैठी दिल अपना
ज़िन्दगी जो मरुस्थल हो चुकी थी
मुहब्बत के अंकुर उपजाने लगे