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15 Jun 2023 · 1 min read

तुम ही मंजिल…

तुम ज्योति , मैं अंधेरा
मैंने तुम्हें बुझाने का प्रयास किया
तुमने बदले में मुझे प्रकाश दिया
मैं हिंसक , उद्दंड
अत्याचारी था
और तुम त्याग की सुंदर प्रतिमा…
तुमने प्रेम की कटार से
मेरे भीतर के जानवर की ले ली जान
बना दिया मुझे रहमदिल इंसान
अब मेरे सीने में भी
धड़कता है दिल
इस दिल की प्रियतम
तुम ही मंजिल
तुम ही मंजिल…।

(मोहिनी तिवारी)

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