‘तुम ही तुम’
जहाँ भी देखूँ तुम ही तुम हो।
कहीं धूप गुनगुनी हो,
कहीं बर्फ का मौसम हो।
कहींमद मस्त पवन हो,
कहीं वसंत का मौसम हो।
कहीं चाँद की चाँदनी हो,
कहीं चमकती शबनम हो।
कहीं झरती निर्झर हो,
कहीं सुमन का मकरंद हो।
जहाँ भी देखूँ तुम ही तुम हो।
कहीं धूप गुनगुनी हो,
कहीं बर्फ का मौसम हो।
कहींमद मस्त पवन हो,
कहीं वसंत का मौसम हो।
कहीं चाँद की चाँदनी हो,
कहीं चमकती शबनम हो।
कहीं झरती निर्झर हो,
कहीं सुमन का मकरंद हो।