तुम साथ अगर देते नाकाम नहीं होता
तुम साथ अगर देते नाकाम नहीं होता
डूबा यूँ नशे में मैं हर शाम नहीं होता
लोगों के सवालों पर सिलते न अगर ये लब,
यूँ नाम ज़माने में बदनाम नहीं होता
तुम रस्मे-वफ़ा हमसे थोड़ी सी निभा लेते,
तो अपनी मुहब्बत का इनज़ाम नहीं होता
छोटे जो तुम्हीं बनकर क़द अपना बढ़ा लेते
तो बात पे छोटी सी कोहराम नहीं होता
ख़ुद को हैं भुला बैठे दीवाने सुख़नवर ये
यूँ ही कोई ग़ालिब या ख़य्याम नहीं होता
ये एक हक़ीक़त है थकता भी है ये इन्सां
होता ही नहीं कुछ जब आराम नहीं होता
सच याद हमेशा ये ऐ ‘अर्चना’ तुम रखना
कोशिश के बिना कोई भी काम नहीं होता
2-09-2022
डॉ अर्चना गुप्ता(836)