तुम लौट आना
तुम लौट आना ऐसे
जैसे सागर से जुदा हो
लौट आती है लहरे
पतझड़ के बाद
जैसे निकल आते है
पेड़ो पर हरे-हरे पत्ते
जैसे लौट आते है
अपने घोंसले में
आसमां में उड़ते परिंदे
तुम लौट आना ऐसे
जैसे लौट आता है
शहर कमाने गया लड़का
और लौट आती हो अंधेरे होते ही
घास काटने गई औरते
तुम लौट आना ऐसे
जैसे लौट आती हो
देह से निकली आत्मा
तुम्हारे लौटने से
जिंदा हो जायेगा प्रेम
ईश्वर हो जाएंगे स्थापित हृदय में
तुम्हारे लौट आने से
लिखी जाएंगी प्रेम कविताएं
और उन्हें पढ़ कर
प्रेम बढ़ता जाएगा
प्रेम के बढ़ने से समाज में बढ़ेगी करुणा
और टूटती जाएगी भेदभाव की बेड़ियां
आसमां सतरंगी हो जाएगी
और प्रकृति की हरियाली वापस लौट आएगी
द्वारा रचित
अभिषेक राजहंस