तुम मेरी ही मधुबाला……
नवयौवन था आंखों में, जब सांसों मे थी मधुशाला,
तुम आई ऐसे जीवन में, जैसे फूलों की माला
मैं जब जब विचलित होता था, तुम मेरा धीर बढ़ाती थी,
तुम मेरा तन मन जीवन हो, मैं तुम्हारा रखवाला,
हम दोनो मैं जब तकरार हुई, तुम रूठी मैं भी रूठा था,
ना तुम मुझसे ज्यादा खफा रही ,ना मैं रह पाया हठ वाला,
अब मेरा ये जीवन बस तुमको ही अर्पण है
हक है सिर्फ तुम्हारा ही और तुम मेरी ही मधुबाला ….. तुम मेरी ही मधुबाला ।
© प्रताप सिंह ठाकुर “राणाजी”