‘तुम भी ना’
मैं पिछले कुछ दिनों से अजीब हरकतें करने लगी थी, कभी बार-बार चहलकदमी करने लगती तो कभी भविष्य की चिंता में फूट-फूट कर रो पड़ती।
मेरे कानों में शिल्पम की गुस्से से चीखती आवाज़ें गूंजने लगतीं..
“अभी आपकी सास की सेवा करूं, फिर आपके पति की सेवा करूं , तबतक आप लटक जायेंगी मेरे गले में.. रिश्तों की दुहाई देते हुए..मैं बस आपकी और आपके खानदान की सेवा करने के लिए बना हूं”
शिल्पम तो पैर पटकते हुए जा चुका था.. पर मैं! उस दिन से मन से टूट कर एकदम छितरा सी गई थी। परिस्थितियों के दुष्चक्र में मैं बुरी तरह फॅंस चुकी थी। इनके यूएस जाने के ठीक एक दिन पहले शिल्पम ने जिस तरह से झगड़ा किया था, वो आज भी अंर्तमन हिला देता है। आज कमरे में बैठे-बैठे जी घबड़ा गया तो बाहर निकल आई।
सहसा मैं चौंक पड़ी.. सामने गेटमैन एक लिफाफा लिए खड़ा था। मैंने इनकी राइटिंग देखी तो झट से उसको खोला..”अरे! इनका ख़त! मैंने थरथराते हाथों से अंदर से ख़त निकाला और पढ़ने लगी..
“प्रिय शकुंतला, जबतक ये पत्र तुम तक पहुंचेगा, मैं जला दिया जाऊंगा। तुम्हें तो पता है, मैं भारत नहीं आ पाऊंगा, कोरोना मुझे खत्म कर चुका है। मैंने आनलाइन सारी संपत्ति तुम्हारे नाम कर दी है। शिल्पम ने जिस तरह उस दिन तुमसे झगड़ा किया था, वो असहनीय था। मैंने उसको धन-संपत्ति से बेदखल कर दिया है। तुम और अम्मा मेरे अनाथालय की देखभाल करना और उन सब बेसहारों की मां बनकर रहना”
“अरे! तुम भी ना..” कहकर मैं नियति की इस क्रूर लीला पर और उनका आख़िरी ख़त पढ़कर फूट-फूट कर रो पड़ी।
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ