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22 Nov 2024 · 1 min read

*”तुम प्रीत रूप हो माँ “*

“तुम प्रीत रूप हो माँ “
तुम प्रीत रूप हो माँ ज्योति स्वरूप हो माँ !!
हिमालय पर्वत से ऊँची सागर सी गहरी हो माँ !!
वायु सी गतिशील साधना शक्ति पुंज हो माँ !!
सृष्टि का आरंभ महाप्रलय का काल भी हो माँ !
वात्सल्य प्रेम करुणा दया का सागर भी हो माँ!
बारिश की मूसलाधार बूंदो की फुहार हो माँ!!
स्नेहिल अंनत अथाह सागर का उमड़ता प्यार हो माँ !!
चँद्रमा सी शीतलता स्नेहिल स्पर्श की जादू सा रामबाण हो माँ !!
सृजन विनाशस्वामिनी समस्त विश्व पालिका हो माँ !!
अदृश्य पुष्पों की भीनी खुशबुओं की बहार हो माँ!!
ढूढती फिरती हूँ सुन्दर मूरत में वही एहसास हो माँ!!
बंदा परवर दीदार करते आँचल में मोहक अंदाज हो माँ!!
सर्व शक्ति दिव्य दृष्टि स्वरूप सुनहरी छाँव हो माँ!!
हम तुम्हारे चरण की दासी कृपा बरसाती हो माँ!!
जाग्रत कर नित नए विश्वास जगाती हो माँ!!
उज्ज्वल निर्मल चैतन्य मन को मधुर संगीत बनाती हो माँ!!
कृपा भरी सदृष्टि से जीवन को सँवारती हो माँ!!
अशांति शोक द्वेष को ह्रदय पटल से हटाती हो माँ !!
अंध तमस हार जीत सुख दुख के तारों से सुखद अनुभव कराती हो माँ!!
जगत सँसार के सृष्टि रचना में नवीन श्रृंगार हो माँ!!
मान सम्मान अटूट आस्था से रिश्तों की प्रगाढ़ता हो माँ!!
आने वाली हरेक पीढ़ी का सफल एहसास हो माँ!!
हर रूप में हर रँग में हर सँग में बस जाती हो माँ!!
अनंत शौर्य शालिनी असंख्य विभूतियाँ हर अंश में प्रगटी हो माँ !!
शशिकला व्यास शिल्पी✍️🙏🌹

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