तुम पर क्या लिखूँ …
दोस्ती का पहला एहसास हो तुम
अब तो सबसे खास हो तुम
नादानियां को करते माफ हो तुम
तुम पर क्या लिखूँ
मेरे जीवन साथी हो तुम।
.तुम पर क्या लिखूं…..
मात पिता ने अपने आंगन से
आँगन तुम्हारे भेज दिया
तुमको सर्वस्व मानू यह मुझको बोल दिया
अब तो मेरा आधार हो तुम
तुम पर क्या लिखूँ
मेरे जीवन साथी हो तुम।
ना समझ थी मैं
गलतियां की एक कविता थी मैं
समझदारी ने तुम्हारी
मेरी गलतियों को नजर अंदाज किया
धीरे-धीरे तुमने मेरा वर्चस्प बढ़ा दिया
इस घर की सबसे
मजबूत दीवार हो तुम
तुम पर क्या लिखूँ
मेरे जीवन साथी हो तुम।
हरमिंदर कौर अमरोहा