” तुम निकलो छम ” !!
गीत
सारे रंग समेटे ,
हो बैठे तुम !
खुशियां भी तुमसे ही ,
है भरती दम !!
महकी ना फुलवारी ,
दिन बीत गये !
दामन खाली खाली ,
दिन रीत गये !
शीश झुकाए बहारें ,
हैं आंखें नम !!
कलकल ना सरिता की ,
थम गयी लहर !
पनघट भी सूने से ,
ना कटे पहर !
शोख हवाओं का भी ,
है टूटा खम !!
दर्पण में परछाई ,
है गई ठहर !
धुंध खूब छाई सी ,
मच गया कहर !
दिनकर छिप कर बैठा ,
ढा रहा सितम !!
वक्त बना हरकारा ,
दर गया ठहर !
भूल करो अनदेखी ,
है मचा गदर !
पायल को खनकाती ,
तुम निकलो छम !!
बृज व्यास