तुम जैसे बस तुम ही हो
तो क्या कि तुम चुपचाप दबे पांव आते हो
तो क्या तुम मुझे संबरने मौका तक नहीं देते
तो क्या कि तुम गले नहीं मिलते मुझसे
तो क्या कि तुम फरमाईशें नहीं करते
तो क्या कि तुम्हे शिकायतें होती नहीं मुझसे
तो क्या कि मै पूछती नहीं कुछ
तो क्या कि तुम रूठते नहीं कभी
तो क्या कि तुम कुछ कहते नहीं
तो क्या कि मै कुछ दिखाती नहीं तुम्हे
बस इतना क्या कम है कि
तुम आते हो बिन बुलाये
और पाते हो मुझे बिखरा हुआ
खोया हुआ और उलझा हुआ
गले नहीं मिलते बेशक़
पर नज़र को नज़र मे उतार देते हो
एक प्याली चाय और कुछ मूंगफली के दानें
टूंगते हुये यूं ही घंटों गुजार देते हो
बिन पूछे ही हाल बताते हो
और बीता बिसार देते हो
बातों ही बातों मे मै
कितनी दफ़ा बताती हूं खुद की बीती
खुद के मुंह से
और कितनी बार तेरे जाने की खुशी हुई
कहकर खुद ही ..खुद पर मै हंस लेती हूं
झूठ बोलकर खुद से ही खुद को झूठा कह लेती हूं
तुम हंसते हो ये हंसी देखकर
मै सब कुछ सह लेती हूं
क्या है ये? मै क्या जानूं
हां मगर वक्त जाने के बाद
कई मिलेगे तुम जैसे पर
नहीं मिलेगा तुम सा कोई
तुम सा तो बस एक ही है
तुम हो बस दूजा कोई नहीं
प्रियंका मिश्रा_प्रिया
अलीगढ़