तुम क्या समझो समय बचाकर, कैसे कविता लिखता हूँ
तुम क्या समझो समय बचाकर, कैसे कविता लिखता हूँ
सुबह उठूँ इक आस लिए मन
उर में नया विचार भरे
खतम करूँ मैं काम सभी फिर
लेखन को तैयार करे
इसीआस से उर चिंतन कर भावपूर्ण कुछ लिखताहूँ
तुम क्या समझो………………………………….
आँख चुराकर घर वालो से
इक एकांत पकड़ता मैं
जो मुझको डिस्टर्ब करे तो
उसपर खूब अकड़ता मैं
माँ डांटें कुछ काम नही फटकारें उसकी सहता हूँ
तुम क्या समझो………………………………….
कविता लिखने की उर अपने
भाव उमड़ते रहते हैं
हाँथ लिए मोबाइल घर से
दूर भटकते रहते हैं
नोट पैड एप्लीकेशन में शब्दों को फिर गढ़ता हूँ
तुम क्या समझो…………………………….
अभिनव मिश्र अदम्य