तुम क्या जानो
आई हो तुम बन पुरवाई,
आंचल में मधुमास लिये।
निज छवि की सुंदरता का,
तुम्हें कहां आभास प्रिये।
हृदय तुम्हारा प्रेम का सागर,
तुम फूलों की बगिया हो।
क्या हो तुम, तुम क्या जानो,
तुम जीवन का एहसास प्रिये।
बगिया का माली बन कर,
तुम्हें निरखता सदा रहूं।
सुगम करुं पथ,कंटक चुनकर,
यही सदा करूं प्रयास प्रिये।।
( जय प्रकाश श्रीवास्तव पूनम)